Monday, February 16, 2009
हथकडी....
किस खुशी की बेबसी का अब मुझे फिराक है
आज तो यहाँ पर सारा गुल्सितां ही राख है
हाथ थामे साथ चल रहे थे जिसके अब वही
हमसफ़र ने मेरे मुझसे फेरी अपनी आँख है
दायरों के कायदों में बाँध के कौन रह सका
हर घड़ी इस हथकडी की कैद कौन सह सका
मैं ही क्या वो वीर हूँ जो बाँध सारे तार
अपने सर पे लिख रहा हूँ अपनी जिंदगी का सार
कोई सुन रहा नही है, कंठ थक गए हैं पढ़ के
बत्तियां बुझी है, लोग सो रहे हैं इस शहर के
हथकडी के फायदे में, हमसफ़र के कायदे में
तार बांधे रह गया हूँ ,गुल्सितां में मैं बिछड़ के...
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